दफ्तर की मस्त मस्त छोरियां
दिलफेंक अदा
मस्त निगाहें
कातिल हैं इशारे
आशिक भी कम नहीं
हाथ पकड़
नैनों से जकड़
खोली पर बुलावा
उफ्प ये नज़र
उफ्फ ये ज़िगर
कई बार मचलता है
दिल होता नहीं
जुबान फड़कती है
इश्क, चुम्मन नहीं
ये बात कुछ और है
समझा करो, समझा करो, समझा करो
भोर की शिफ्ट में
लड़कियां टहलती हैं
हैरान सी परेशान सी
अधरों से कभी
वो बात भी फिसलती है
समझो तो सही
हर लफ्ज़ में काम है...
हैरान सी परेशान सी
मासूम नहीं नैन सही
बालों में उंगली के फांदे का इशारा
1 comment:
बेहतरीन है आपका अंदाज-ए-बयां..आपके दिल का दर्द समझ गया ये जहां
Post a Comment