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Saturday, April 19, 2008
ये प्यार है,पागलपन या कुछ और...
जेपीनगर में हुए नरसंहार में यूपी पुलिस ने आज जो खुलासा किया है वो कई लिहाज से चौका देने वाला है...पिछले सप्ताह जब एक ही परिवार के सात लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी, तो एक सवाल कौंध रहा था कि आखिर इन हत्या के पीछे कौन रहा होगा....कौन होगा जिसके हाथ आठ महीने की मासूम बच्ची का कत्ल करते हुए थर्राया नहीं होगा....ये वारदात ऐसी थी जैसे निठारी से मिलता जुलता लग रहा था ...लेकिन आज जब पुलिस ने इस घटना से पर्दा हटाया और सच्चाई सबके सामने लाया तो दिलो दिमाग दहल गया...दरअसल इसी परिवार की एक लड़की ने अपनी दीवानगी की सारी सीमा लांधते हुए इस तरह के वाकये को अंजाम दे डाला....जिसे सुनकर अनसुना कर देने का मन होता है......बार-बार उस मासूम बच्ची का चेहरा सामने आता है जिसका गला रेत डाला गया...और अब ये जानकर कि उसकी ही बुआ या बहन ने उसे मार डाला तो न कहने को कुछ रह गया है...न सोचने को...दिल बैठ गया है और दिमाग कुछ करने को राजी नहीं है....इसी बीच पता चलता है कि गाजियाबाद में एक बेटे ने अपनी मां को मार डाला...ये दोनो ख़बरें तब आई जब हम दिल्ली के द्वारिका में हुए एक साथ तीन मर्डर के विजुअल देख रहे थें.....
इसमें भी कुछ ऐसी ही बातें सामने आ रही हैं...प्राइमा फेसी ये कहा जा रहा है कि लड़के का किसी से प्रेम संबंध था और उसके माता पिता ने जायदाद अपनी बहू के नाम करने का फैसला कर लिया था....लिहाजा लड़के को गुस्सा आया और उसने मां-बाप ,बीवी तीनो को मार दिया....
तीन में से दो मामले ऐसे हैं जिनमें प्यार एक बड़ा फैक्टर है....जेपीनगर की लड़की और द्वारिका के लड़के की तरफ से की गई सनसनीखेज हत्या के पीछे प्रेम वजह रही...जी हां ये दोनो ही लड़के -लड़की को किसी से प्रेम था....सवाल तो ये उठता है कि आखिर किसी प्रेम करने वाले के दिल में इतनी नफरत हो कैसे सकती है???
प्यार करने वालों ज़रा संभालो....दरअसल ये दीवानगी नहीं असंवेदनशीलता का सबसे विकृत रूप है जो स्व में अथाह डूब जाने के बाद पैदा होता है.....................
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5 comments:
आजकल तो ना जान की और ना ही रिश्तों की कोई वैल्यू रह गई लगती है।
कमाल की भाषा में तुम अपने विचारों को सामयिक घटनाओं के साथ व्यक्त कर रही हो। समाज में प्रेम का अवमूल्यन इसलिए हो रहा है कि लोग गुस्से का अधिक से अधिक दुरूपयोग कर रहे हैं। तुम अपने िवचारों को व्यक्त कर अपने मजबूत व्यक्तित्व को सामने ला रही है। तुम्हें प्रोत्साहन मिले। लोगों का सम्मान मिले।
आपकी बात भी सही है...बड़ॆ शहरों में आकर नज़र थोड़ी खराब तो हो ही जाती है...अपना शहर तो अपना होता ही है...आपकी अच्छा लिख रही है..इसी तरह कायम रहें..मेरी शुभकामनाएं
मैम आपकी छोटी सी कहानी छोटे शहरों की इत्मिनान भरी ज़िदगी पढ़कर सचमुच ये एहसास हुआ कि बड़े शहरों के लोग एक ऐसी अंधी दौड़ लगा रहे है जिसका अंतिम पड़ाव और लक्ष्य क्या है शायद इससे वो अनभिज्ञ हैं..नीरो के माध्यम से ये आपने यह साफ किया है कि सुकुन भागने से नहीं बल्कि इत्मिनान से हासिल होता है.. जो दिल और मन की संतुष्टि पर निर्भर है....
क्या प्रेम की इतनी घिनौनी पराकाष्ठा हो सकती है.ऐसे लोगों के दिमाग की जांच होनी चाहिये,प्रेम तो एक सीढी आगे ही बढाता है, गिराता नहीं.
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