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Sunday, May 24, 2009

मैं बैल हांकूंगा

बाबू!
यहां मन नहीं लगता
ओझल हो रहा है सबकुछ
बाबू...
बस! बस!
यहां मन नहीं लगता
चलो, चलो...
ये जगमग चांद सितारे नहीं बाबू
मुझे मद्दिम सी डिबिया में रहना है
यहां नहीं बाबू
यहां मन नहीं लगता
चिकनी जुबान, चिकने लोग, चिकना फर्श
मेरा पैर फिसलता है बाबू!
यहां नहीं दोस्त मेरे
मुझे बुद्धू बिल्लू के पास जाना है
नहीं, नहीं बाबू
यहां ना छोडे जाओ
इस शहर में मेरा दम घुटता है
हर कोई तमीज से बोलता है यहां
बाबू यहां मेरा घर नहीं
मुझे घर जाना है
मुझसे न होगी चाकरी
बैल जैसा न होना बाबू
मैं खेतों में बैल हांकूंगा
बस बाबू बस!
मुझे घर जाना है
यहां मेरा घर नहीं

3 comments:

अजय कुमार झा said...

ye dard wo samajh saktaa hai jo khud kabhi gaanv mein raha ho , sundar chitran hai.....

सुशील छौक्कर said...

आप हमेशा कुछ नया और अलग सा लिखा पढवाती है। आनंद आ गया पढकर।

अर्चना राजहंस मधुकर said...

धन्यवाद आप सभी का
अर्चना