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Thursday, May 15, 2008

मुन्ना की दादी


आज सुबह से ही रो रहा है मुन्ना
लगता है दादी की याद आ रही है
बहुत खुश होता था मुन्ना
जब गोधूलि बेला होते ही
वह बुढ़िया दादी के सीने से जाकर दुबक जाता था
आंचल को इकठ्ठा कर हाथ में कसकर दबा लेता था
उसकी अम्मा लाख कहती
बुढ़िया,
कर्कस आवाज वाली बुढ़िया
तूं मेरे बच्चे को बीमार कर ही देगी
डायन की तरह पीछे पड़ी रहती है
बुढ़िया,
लेकिन बुढ़िया मुन्ना की दादी थी
उसे कहानियां लोरियां सुनाने वाली दादी
नन्हे हाथों से पैर दबाने पर
गुड़ का टुकड़ा देने वाली दादी
मुन्ना ढूंढता है अपनी दादी को
आज भी वैसे ही
मरी नहीं है उसकी दादी
इतना तो उसे पता है
क्योंकि दादी की कहानियों में कई बार मरती थी दादी
कभी सोनू की कभी मोनू और पिंटू की...
और वो तारा बन जाती थी
लेकिन, उसकी दादी तारा नहीं बनी है
मुन्ना खूब सोच रहा है...
उसकी दादी कहां गई होगी ?

स्कूल से आते ही
भाग कर जाता है उस छोटे सांकल कमरे में
"दादी"...
"आ गया मुन्ना तूं"
कितना सुनना चाहता है मुन्ना ये
लेकिन उसे कौन देगा ये जवाब
मुन्ना को कौन बताएगा
उसकी दादी तारा नहीं बनी
तो कहां गई...
दादी ने भी तो कभी नहीं बताया था उसे
दादी तारा नहीं बनती तो कहां चली जाती है.....
ये शायद मुन्ना को उसकी अम्मा और अब्बू ही बताएंगे एक दिन
कि दादी के लिए एक और भी जगह होती है...
जहां उसे मरने के पहले छोड़ दिया जाता है...
मुन्ना, उसे वृद्धाआश्रम कहते हैं...

















1 comment:

Anonymous said...

bharosa
ab bhi maujud hai
duniyan mai
namak kee tarah
ab bhi
peron ke bharose pakhchi
sabkuch chor jate hain
basant ke bharose vrikhch
bilkul rit jate hain
patwaron ke bharose nao
samudra langh jate hain
barsat ke
bharose bij
dharte cain sama jate hain
anjan purush ke piche
istree chal dete hai.