कल रात खाना खाते घुप्प अंधेरा छा गया...दरअसल बिजली चली गई थी....चुंकि हमारे इलाके में बिजली जाती नहीं है इसलिए विकल्प के तौर पर कोई वयवस्था नहीं थी...आंखों के आगे छाये अंधेरे में हाथ को हाथ नहीं दिखने लगे...
इस बीच किसी का फोन आ गया तो मोबाइल से रौशनी कमरे में फैल गई...शुक्र....वरना मैं तो समझ ही नहीं पा रही थी ये क्या हो गया...मोबाइल की रौशनी के सहारे कैंडल ढूंढना शुर किया....शायद मिल जाए....वैसे मैं वो चीज ढूंढ रही थी जिसके होने की कोई गुंजाईश नहीं थी....लेकिन फिर लगा कि ढूंढा जाए कभी ले आए हों....और मुझे मोमबत्ती का एक टुकड़ा खुदा की तररह मिल गया...या अल्लाह...मेरी खुशी के बारे में पूछिये मत कैंडल लाइट डिनर...वाह.....
मोमबत्ती जलते ही जिस हाथ को दूसरा हाथ नहीं दिख रहा था उसे मुंह भी दिखने लगा....बहुत मजा आ रहा था...लाइट जाने के बाद जो परेशानी खड़ी हो गई थी....कैंडल लाइट डिनर ने सब खत्म कर दिया....नो प्लानिंग और कैंडल डिनर...कौन नहीं खुश होगा.....लेकिन जैसे ही कौर मुंह में गया...भक से रौशनी जगमगा गई....ओह ये तो बिजली है यार...भला कोई बिजली आने से इतना दुखी होता है...लेकिन मुझे बहुत दुख हुआ था...अगर ये पता होता कि बिजली ये गई और वो आई वाले हिसाब में गई है तो मैं क्यों इतनी परेशान होती.....बिजली के सामने कैंडल जैसे बाघ के सामने मेमना.....मैं कैंडिल बुझाना भूल गई...अनमने ढंग से खाये जा रही थी...फिर कैंडिल पर ध्यान गया...तो फूंक मार कर उसे बुझाने के लिए लपकी....लेकिन फौरन वापस हुई....मोमबत्ती को जलता ही छोड़ दिया...दरअसल ,छुटपन में मां कहती थी कि मोमबत्ती मुंह से नहीं बुझाना चाहिए....इसलिए जैसे ही मोमबत्ती की तरप बढ़ी मुझे मां कि बात याद आ गई...मां हमेशा कहती हैं कि आग ब्रम्हा है..सबसे ईश्ट देवता...उन्होंने हमें जन्म दिया है...उसमें मूंह नहीं लगाना चाहिए.....उन्हें जूठा नहीं करना चाहिए...इसलिए मैने मोमबत्ती बुझाई नहीं....और खाना, खाना भी बंद कर दिया...मन भर के रो लिया....मां की और भी ढेर सारी बातें याद आने लगी...सोचने लगी कि मां कि बातें कितनी यात्रा करती है..ज़ेहन में बैठ जाती है....हजारों मील दूर होकर भी हम उनके सिखाये पर अमल करने को बेबस हो गए....क्या फर्क पड़ता अगर मैं कैंडिल मूंह से बुझा ही देती....वो देखने तो आ नहीं रही थी लेकिन कहां कर पाई ऐसा....हम लाख बड़े हो गए हों....लाख एडवांस हो गए हों, लेकिन मां की बातें आज भी हमे अपनी परंपराओं अपनी संसकृति से जोड़े रखती है....मां को याद कर के खूब रो लिया..तो घर के और लोग भी याद आने लगे...आस पड़ोस भी याद आया....और बस रात यूं ही गुजर गई...कुर्सी पर बैठे- बैठे...कैंडिल कब बुझ गया पता नहीं चल पाया..
बड़े हो जाने का भी अफसोस होने लगा....दिल कचोटने लगा...घर जाने को मन मचलने लगा....मां से बात करने को उतावली हो गई....सुबह हो ही गई थी....मां को फोन किया....मां ने कहा दिल्ली में लाइट तो रहती है न...समाचार में सुना है वहां भी बिजली जाने लगी है....सुनो इस बार तुम्हारे सूटकेस में एक टार्च भी रख दिया था...उसके बाहर वाले पॉकेट में बैट्री भी रखी है....लगा लेना...लाइट वाइट चली जाए तो काम आएगा.....
ये होती हैं मां....अपने बच्चों की जिंदगी में रौशनी भरती हुई....
3 comments:
सरल और सहज तरीके से अपने भाव कहने की कला बहुत अच्छी लगी. हमें भी माँ की याद आ गई. आपको हमारी शुभकामनाएँ
अर्चना जी, आप ने इतने अच्छे ढंग से मोमबत्ती को बुझाने के ढंग को लेकर मदर्स-डे की पूर्व-संध्या पर अपनी डियर मां को याद किया और सुबह उन से फोन पर बात भी कर लई। आप ने तो भई बड़े सिस्टेमैटिक ढंग से मनाया मातृ-दिवस। बधाईयां।
वैसे यह टिप्पणी लिखते लिखते मुझे तो मेरी नानी याद आ गई....दो-बार टिप्पणी पूरी लिखी, लेकिन जब क्लिक किया तो टिप्पणी गायब।
वाह भई डॉकसाब आप ने तो मां की मां को याद कर लिया इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है...वैसे ऐसी दिक्कत मुझे भी आ रही है...शायद सेटिंग में कोई गड़बड़ी है...ठीक हो जाएगा.....आप का शुक्रिया
मिनाक्षी जी आपको पोस्ट पढ़कर मां याद आ गई .....और मुझे आपकी तस्वीर देखकर....बहुत धन्यवाद आप सभी का.....
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