मेरे पास जुबान है... मैं बोल सकती हूं। लेकिन अपनी बात कहने की ताकत मुझमें नहीं हैं... तुम मेरी जुबान बनो...मुझे अ ब स की कोई समझ नहीं है। लेकिन अपने बारे में मैं दुनिया को बताना चाहती हूं... .इसके लिए जरूरी है कि कोई मेरी जुबान बने.....तुम शायद ऐसा कर सकती हो......तुम मेरी कथा को दुनिया तक पहुंचा सकती हो....बता सकती हो दुनिया को कि मैं भी दुख- सुख को समझती हूं....मेरे भी मन में भाव उठते हैं....मुझे भी तकलीफ होती है और मेरी आंखों में भी आंसू आते हैं......ऐसा जब भी होता है तो मैं सोचती हूं काश मुझे भी पढ़ना आता लेकिन यह सब अब बिल्कुल संभव नहीं है.....इसलिए तुम जो भी हो मेरी जुबान बनो....लिखती पढ़ती हो मैने सुना है.....बस मेरा भी एक काम कर दो.....एक स्त्री के दर्द को समझो.....मेरी करुणा को तुम समझ रही हो....सखी मेरा बोझ हल्का करो...मेरी जुबान बनो......
यह एक लड़की की गुहार है....एक ऐसी गुहार जो न जुबां से निकलती है....और न ही शब्द बनकर कागज पर उतरती है.....बस उसकी देह की अपनी एक भाषा है....बेहद ठेठ, कहीं किसी प्रदेश की स्थानीय बोली में, टुटपूंज तरीके से वह यह सब बरसों से कहती आ रही है....देह की भाषा से मैं जितना कुछ समझ पाई उसका सार यह है.....
वह एक लड़की है.....उसका भी कोई नाम है......उसके पास दो मजबूत हाथ और एक उससे भी ज्यादा मजबूत दिल है.....दोनो का इस्तेमाल कर वो अपनी जिंदगी का एक हिस्सा जी चुकी है.....वो एक बड़े बंगले में रहती है...लिहाजा..उसे हर वो चीज मयस्सर है जो किसी भी आम आदमी की ख्वाहिंश हो सकती है.....उस बंगले में सब कुछ है.....टेलीविजन सेट, कंप्यूटर, लैप टॉप, उस घर के हर वयक्ति के पास पहनने के लिए सैंकड़ों कपड़े हैं.....और इसके साथ आराम तलब की अनेक चीजें मौजूद हैं.... आप बस यूं समझ लीजिए कि उस घर में हर आधुनिक सामान उपलब्ध है....लेकिन ज़रा गौर फरमाइयेगा कि उस घर में क्या-क्या नहीं है......कमोड साफ करने के लिए एसिड नहीं है......आप सोच रहे होंगे कि आज कल तो डोमेक्स का जमाना है......दरअसल एसिड और डोमेक्स की जगह पर वह लड़की है.....हैरानी की कोई बात नहीं है......कमोड साफ करना उसका काम है.....वही उसमें लगी रहती है......और घिस घिस कर ऐसा चमकाती है कि क्या डोमेक्स और क्या एसिड....उस घर में वॉशिंग मशीन नहीं है.....क्योंकि कपड़े साफ करने के लिए वह है....हर रोज वह दर्जनों कपड़े धोती है.....लेकिन उसे पहनने के लिए जो कपड़े दिए जाते हैं वह कभी कभार ही धुलते है.....अगर धूलते भी है तो सर्फ के उस गंदे पानी में जिसमें कई कपड़े धुल चुके होते हैं.....वैसे भी वह एक जोड़ी कपड़ों को दो साल से ज्यादा पहनती है.......काम कर -कर के उसके हाथ जवाब देने लगते हैं......पैर सूजने लगते हैं.....लेकिन मजाल क्या है कि वह जरा आराम फरमा ले....सूजे हाथ पैरों से ही वह खाना बनाने लगती है.......कभी नहीं कहती है कि उसे कितनी तकलीफ है......तकलीफ बताने से डरती भी है....एक अप्रत्याशित भय हर वक्त उसके साथ रहता है.....
हैरान होने के लिए अभी अपने जिगर को संभाल कर रखिए.....हैरान होना ही है तो इस बात पर होईये कि वह सात आठ साल की उम्र में दिल्ली आई थी और अब तक वापस अपने घर नहीं लौट पाई है......कैसै लौटेगी......उसे लौटने कौन दे रहा है......वह है ही इतनी भली......किचेन से लेकर बेडरूम तक का खयाल जो रखती है वह......कृपया ग़लत मतलब न निकालें......बेडरूम का खयाल रखने का ये मतलब कतई नहीं है कि वो अपने मालिक की रातें रंगीन करती है......ये तो कभी कभी ही होता है......हर रोज जो होता है वह यह कि सुबह से लेकर देर रात तक वह अनेक कामों के बोझ से लदी दबी रहती है....उसे इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि उससे कहीं कोई चूक न हो जाए....क्योकि एक छोटी सी चूक भी उसपर बहुत भारी पड़ती है.....झाड़ू पोछे से लेकर बंगले के हर व्यक्ति के लिए हुक्म के मुताबिक भोजन बनाना होता है....घर आए मेहमानों की मेहमाननवाजी भी उसी के काम का एक हिस्सा है....इन सब के बीच उसे सांस लेने की फुर्सत नहीं रहती । मगर वह हाथ ऊपर कर ग़हरी सांस भरती है......और एक शब्द उसकी ज़ुबान से फूटता है.....या मौला.......ऐसा लगता है जैसे सीने में भर आए दुख के तूफान को वह अल्लाह के हवाले कर देना चाहती है......ऐसा लगता है अगर उसका कलेजा कहीं फट गया तो अभी के अभी पूरा फर्श लाल खून से रंग जाएगा.......फिर वह क्या करेगी.....मिनट भर में अपनी चुन्नी से ही सारा खून साफ कर देगी...और अगर साफ नहीं हुआ तो...........तो फिर मालिक के चांटे..........उफ्फ............इसलिए तो वह अपने मौला को सारा दुख दे देती है.....ताकि वह अपने चेहरे पर मुस्कुराहट बना कर रख पाए......आखिर इसी मुस्कुराहट का क्वाब तो वह और उसकी सहेलियां बचपन से देखती थी......जो शहरों में ही मिलती है.....उसने अपने कस्बे में तो लोगों को कभी कभार ही हंसते देखा था...लेकिन शहर आने पर उसे पता लगा कि जो लोग हमेशा हंसते हैं दरअसल वो हंसी ही नकली होती है......जैसे वह खुद हमेशा अपने चेहरे पर नकली हंसी सजाए रहती है.....उसके भीतर कितना दुख कितनी अनिश्चतता है यह तो वही जानती है.....कितने सारे सपने देखे थे उसने बचपन में.....तभी तो जब वह जब शहर आ रही थी तो पलट कर एक बार भी अपने मां बाप को देखा भी नहीं था.....उस वक्त तक तो लग रहा था कि वह किसी बड़े शहर जा रही है.......जहां सिर्फ खुशियां होगी...दुख तो होगा ही नहीं...आज उसे इस बात की सबसे ज्यादा तकलीफ है.....उसे डर है कि वह अपने मां बाप से शायद कभी नहीं मिल पाए.......वो कहती है जब उसके मां बाप उसे बेच रहे थे तो बेच खरीद क्या होता है उसे पता ही नहीं था....वो तो बस अपनी सहेलियों से इतरा रही थी......क्योंकि उसकी मां ने उसे बताया था कि बेटी तुम जहां जा रही हो वहां तुम्हे हर वो चीज मिलेगी....जो तुम चाहोगी.....मां ने कहा था कि वहां झूले भी होंगे.....और जब वह शहर आई तो....तो झूले थे भी लेकिन.....वो झूले उसके लिए नहीं थे......इस चीज का अहसास जल्दी हो गया था उसे....उसने बंगले से भागने की कोशिश भी की थी...घर वापसी की वह उसकी पहली और आखिरी पहल थी....उसके बाद वह कभी मन से भी नहीं भागी थी....लेकिन उसके चेहरे पर एक अदभुत भाव दिखता है....जैसे वह अपने ईश्वर से कह रही हो.....एक दिन तो तुम्हे न्याय करना ही होगा......और यह सच भी है उसके साथ अगर कोई न्याय कर सकता है तो वह है ईश्वर...उसका मौला.......लेकिन मुझे एक उसकी एक चीज ता जिंदगी सालती रहेगी वह है उसकी हंसी.....पता नहीं कैसे वह अपने भीतर गुबार भर कर रह रही है.....उसे देखकर उसके मिलकर लगता ही नहीं है कि वह किसी लोकतंत्र में रह रही है....वहां जहां जनता का शासन होता है.....ऐसा भला कैसे हो सकता है कि एक लड़की की चुप्पी का शोर लोकतंत्र के कानों तक पहुंच ही नहीं। इससे भी बड़ी बात यह है कि वह आखिर अपने देश के लोग इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं....आखिर इसके पीछे कौन सी मानसीकता काम करती है...वह लड़की एक साथ बंधुआ मज़दूर भी है.....सेक्सुअल हेरासमेंट की शिकार भी और कुछ सालों पहले तक बाल मजदूर भी थी....अपने देश में ऐसी तमाम दिक्कतों के लिए कानून हैं......लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में सारे कानूनों की धज्जियां उड़ गई है......और वह इसकी अकेली उदाहरण नहीं है....उस जैसी कितनी ही लड़कियां और लड़के ऐसा जीवन जी रहे हैं....जहां न उन्हे पहनने के लिए कपड़े दिए जाते हैं.....और न ही खाने के लिए पेट भर भोजन.....लेकिन लोग फिर भी जी रहे हैं......क्योंकि उसका मालिक कहता है..... बैंक में उसके नाम के पैसे ज़मा हो रहे हैं....उसके मां बाप को पैसे भेजे जा रहे हैं......लेकिन यह सब एक बहलावा है......ये वो लड़की भी समझने लगी है.... ये लड़की आपके आस पास भी हो सकती है....
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