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Thursday, September 29, 2011

बलि का उत्सव

जब तुम्हें मैं जलील करूंगी

सबकी सहमति होगी।

और चुपचाप होकर अगर इस देखे कोई ,

तो तुम मत समझ लेना मैं तमाशा बन रही हूं।

अच्छा होगा तुम उनके मौन को समझना।

जो तुम्हारी झूठी इज्जत ढीली करते वक्त मेरे साथ होगी।

मैं तुम्हें और दलाली करने की इजाजत नहीं दूंगी।

समझ चुकी हूं मैं,

तुम्हारी मेमने जैसी घिघियाहट का सच।

इसलिए ख़ामोश!

मुझे मेरा काम करने दो।

आओ मैं तुम्हारी आहूति दूं,

मृत्यू के ठीक पहले तुम्हें पाप-पुण्य का फर्क बताऊं।

आओ सुला दूं तुम्हें,

कभी नहीं उठने के लिए।

लेकिन क्यों?

मैं इतनी मीठी नींद क्यों दूं तुम्हें?

क्यों ना मैं शामिल करूं उन सबको,

जिन्होंने जाने- अनजाने तुम्हें दलाली की छूट दी

और तुमने उसके सुंदर बालों, सुर्ख गालों को

उछाल-उछाल कर बेचा>

कितना सस्ता हो गया था तुम्हारे लिए स्त्री का हर अंग

कहां से आए थे खरीदार???

मैं उन्हें भी बुलाऊंगी।

ताकि सब मिलकर देखे

तुम्हारी बलि का उत्सव

.......अर्चना.........








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