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Saturday, July 18, 2009

तुम आओगे दोस्त

चंद लफ़्ज अब भी है मेरे पास
तुम आओं तो कहूं...
आओ न एक बार
मिलकर बैठें
वैसे ही...
सच पर डालकर पर्दा
देखें सपने जैसा कुछ-कुछ
तुम्हे याद है
क्या-क्या हम सोचा करते थें
देखते-देखते सच हो गए सारे
और हकीकत गुम गया
आओ न!
बैठें,
बातें करें...
शायद दूर हो जाए भ्रम
इस बात का,
कि सपनों के पीछे भागना सच नहीं है
बड़ी कसक है दोस्त...
खैर छोड़ो...
तुम्हें याद है
जब तुमने फोन पर कहा था
जान, कैसे आउं
पैसे खत्म हो गए हैं
फिर तुमने कहा
आने का मन भी है
क्या करूं?
और तुम आ गए थे न
पैसे उधार मांगे थे दोस्त ?
अब तो अपनी गाड़ी भी है तुम्हारे पास
फिर क्यों नहीं आते
आओ न एक बार
चंद लमहें उधार लेकर...

13 comments:

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प !

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

अर्चनाजी

सुन्दर! अच्छा लगा आपको पढकर

हे प्रभु यह तेरापन्थ

मुम्बई टाईगर

mehek said...

फिर क्यों नहीं आते
आओ न एक बार
चंद लमहें उधार लेकर
bahuthi bhavpurn,badhai

अरविन्द श्रीवास्तव said...

बेहतरीन कविताएं- स्नेह.आत्मीयता से ओतप्रोत...

Vinay said...

बहुत ख़ूब!
---
पढ़िए: सबसे दूर स्थित सुपरनोवा खोजा गया

M VERMA said...

फिर क्यों नहीं आते
आओ न एक बार
चंद लमहें उधार लेकर...
===
त्रासद सच; मार्मिक
बहुत खूबसूरत रचना

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

श्यामल सुमन said...

सपनों के पीछे भागना सच नहीं है - बिल्कुल ठीक लेकिन जीवन में स्वप्न होने भी चाहिए।शुभकामना

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अर्चना राजहंस मधुकर said...

कभी कभी काव्य बहुत पास से होकर गुजरता है...ये रचना उनमें से है...आप सब का धन्यवाद...वैसे मुझे ये सोचकर ज्यादा तकलीफ होती है कि उन लोगों का क्या जो अपना दुख साझा नहीं कर पाते...वो जिन्हें लिखना नहीं आता...जो भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते...कैसे काटते होंगे अपना दुख...

अर्चना

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

nice poem with deep feelings

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Drmanojgautammanu said...

कौन हैं आपके दोस्त जो इतने बुलाने के बाद भी नहीं आते हैं । आपने इतनी जबरदस्त फिलिंग दिया है । इसका कोई जबाब नहीं ।

के सी said...

चंद लफ़्ज अब भी है मेरे पास
तुम आओं तो कहूं...
आओ न एक बार
मिलकर बैठें
वैसे ही...
सच पर डालकर पर्दा
देखें सपने जैसा कुछ-कुछ

यहाँ तक कविता का प्रवाह जबरदस्त है जो अपील करता है आगे पता नहीं क्यों मेरी गाडी थोडा अटकते हुए बढ़ी, कुछ और आगे जाने पर वर्तनी सम्बन्धी जो टाईप की त्रुटियां है वो परेशां करती हैं. फीलिंग्स के स्तर पर ये मुझे बहुत प्रभावित करती है शिल्प थोड़ा सा जल्दबाजी के कारण बिखरा बिखरा सा लगा. वैसे आज ही देखा संजय जी के ब्लॉग पर तो पढ़ने चला आया, अच्छा लिखती हैं बधाई !

Aadarsh Rathore said...

ये भावनाएं हैं, कविता की शैली और मानकों में इन पंक्तियों को बांधना सही नहीं होगा.
भावनाओ का अच्छा अभिव्यक्तिकरण