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Wednesday, October 22, 2008

कब तक चुप बैठें...

एक दिन तूफान आया...छोटा सा तूफान...इतना सा कि कुछ हल्की किस्म की चीजें उड़ने लगीं...ज़मीन से एक एक बालिस्त उपर...हल्की चीजों को लगा कि अब तो बस स्वर्ग अगर कहीं है तो यहीं हैं..."क्या ज़मीन की धूल भरी जिंदगी"...लेकिन थोड़ी देर बाद तूफान ठहर गया...और वे वापस ज़मीन पर लौट आए...इस बार वो अपनी पुरानी ज़मीन पर नहीं लौटे थे और कहां लौटे थे उसे खुद भी नहीं पता चल पा रहा था...




ये छोटी सी कहानी उन लोगों को समर्पित जो हवा के हल्के झोंके को तूफान समझ बैठे हैं...

6 comments:

रंजन (Ranjan) said...

सही कहा..

Manuj Mehta said...

छोटी पर बहुत गहरी. मेरी शुभकामनायें. और हाँ, ज़िन्दगी ख़ुद को समझते बीत रही है तो बेहतर है, कमसकम ख़ुद को खुदा मानने की गलती करने वालों की फेहरिस्त से तो दूर हैं.

manvinder bhimber said...

bahut sunder

Anonymous said...

kafee dino bad blog kee duniya me lautee. achhee kahanee.

अर्चना राजहंस मधुकर said...

हम ब्लॉग की दुनिया से कहीं बाहर नहीं गए हैं...बस कुछ खबरें ज़मा कर रही हूं...थोड़ा इंतज़ार कीजिए...

डॉ .अनुराग said...

इतने दिनों बाद तूफ़ान लेकर आयी है ....