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Thursday, October 30, 2008

ज़रा संभलो, ये तुम्हें बांट खाएंगे



इसे चाहे जो भी कहें...लेकिन टेलीविजन पर अगर मुंबई- बिहार= उत्तर भारत... की कोई भी ख़बर आती है तो मुझे देखने की कतई इच्छा नहीं होती...मुझे लगता है जो देश आतंकवाद से जूझ रहा है उस देश के लोग कैसे आपस में इस तरह से लड़ मर सकते हैं....और एक साथ ये भी लगता है कि आतंकवादी वारदात और मुंबई की हिंसा में कोई ख़ास फर्क नहीं है... मुझे अब भी लगता है कि इस देश के ज्यादातर लोग मूर्खता के बीच अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं....

और ये ज़ाहिर होता इन बातों से कि यहां के लोग इतनी जल्दी बहकावे में आते हैं....आज भी मंदिर मस्जिद धर्म, जाति के नाम पर बंटने में वक्त नहीं लगता...84 के सिख्ख दंगो के वक्त मेरी उम्र काफी कम थी इसीलिए मुझे ज्यादा नहीं पता....लेकिन बड़े होने के बाद जो कुछ भी मैने जाना है...सुना है....और देख पाई हूं... कि मुंबई के में हो रही हिंसा की ख़बरों के फ्लैश बैक में सिख्ख दंगा चलने लगता है...मैं डर जाती हूं...और डर से बचने के लिए टीवी बंद कर देती हूं...जैसे बचपन में भूत की कहानी सुनने के बाद आंखे बंद कर लेती थी...

महाराष्ट्र और उत्तर भारतियों के बीच की हिंसा मुझे अजीब और बेहद डरावनी लगती है...
अभी कुछ दिनों पहले भी जब मैं भागलपुर से लौट रही थी...तो अपने सह यात्री को कुछ इस तरह बोलते सुना था..." नी.....बाबू एक ट्रेन दे दें बस....स्साले रा....की तो ऐसी तैसी... " मैं स.. शख्स के गुस्से को समझ सकती थी... ये भी समझ रही थी कि भड़ास निकाल रहा है...

......लेकिन

दो दिन पहले जब राहुल राज की ख़बर सुनी तो मैं दंग रह गई...शायद मैने उस ट्रेन में जो सुना था वो हकीकत में देख रही थी...

मेरे लिए इससे ज्यादा दुखदायी कुछ नहीं हो सकता...मुझे भागलपुर दंगे की एक एक कहानी याद आ रही है...किस तरह से हमने दिन गुजारे थे वो याद है....

और किस तरह से ज़रा सी बात पर युवाओं का खून खौलने लगता है ये भी देखा है...छोटे बड़े राज ठाकरे हर जगह हर प्रदेश में होते हैं...

लेकिन बड़ा अफसोस है इस बात का कि इसे शांत करने वाला शख्स किसी राज्य में पैदा नहीं होता...

ये विचित्र बात है कि प्रदेश में अपनी राजनीति चमकाने और मराठियों के दिलों में जगह बनाने के लिए राज उत्तर भारतीयों को निशाना बना रहे हैं....बहुत संभव है कि बहुत जल्द राज उत्तर भारतियों से माफी मांग ले....लोग सबकुछ भूल जाएं...लेकिन फ़िलहाल जो सियासत चल रही है उसमें पता नहीं कितने लोग बिला वजह मौत के मुंह में चले जाएंगे...

हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इनके मंतव्यों को समझें...और बेगुनाहों को मरने से बचाएं...हिंसा कभी किसी का घर आबाद नहीं करती है इस बात का अवश्य खयाल रखना चाहिए...

लेकिन ये थोड़ा मुश्किल है...यहां गरीबी है...भुखमरी है...और अनपढ़ों की संख्या ज्यादा है...इन सबसे बड़ी बात ये है कि लोग मतलबी, और खुद में सिमटे रहने वाले होते जा रहे हैं....ज़रा सी स्वार्थ के लिए कोई कुछ भी कर सकता है...हमें सोचना चाहिए कि कैसे इस देश में पढ़े लिखे अच्छे भले लोग आतंकवादी बन जा रहे हैं...अपने ही मुल्क को तबाह कर दे रहे हैं...

खुद में सिमटने की भावना से बाहर आने की जरूरत है इस देश को...वरना, कुछ लोग इसी तरह अलग अलग नामों पर उन्हें बांटते रहेंगे...

टेरर ब्लास्ट या फिर मुंबई में हिंसा कहीं से दो अलग अलग वारदात नहीं है....ये एक साजिश है देश को बांट कर अपनी सियासत चलाने की....इस बात को समझना जरूरी है...

दिल्ली सहित जब तमाम बड़े शहरों में सीरियल ब्लास्ट हुए और उसके पीछे देश के बड़े बड़े इंजीनियर्सस के नाम सामने आए तो मेरे दिल ने खुद से कई सवाल पूछे...मसलन ये कि आखिर क्यों लोग इस तरह की वारदातों में फंसते हैं.....

और इसका जवाब मुझे तब मिल गया जब जोधपुर के एक मंदिर में माता के पहले दर्शन के लिए पहुंचे 100 से ज्यादा लोग मिनटों में मौत के शिकार हो गए....


मैं आस्था पर सवाल नहीं उठाना चाहती लेकिन सच कहूं तो जोधपुर के मंदिर में जो हादसा हुआ था उस वक्त भी मैने टेलीविजन बंद कर दिया था...इसलिए कि मेरे लिए ये समझ पाना बड़ा मुश्किल था कि आखिर क्यों इतनी बड़ी संख्या में लोग पट खुलते ही माता के दर्शन करना चाहते थे....
क्या माता के पहले दर्शन और बाद के दर्शन में कोई अंतर होता है...इस देश में अब भी कौवा कान ले उड़ा तो उसके पीछे उड़ने की बात को तवज्जो दी जाती है...

इससे बचने की जरूरत है....




9 comments:

सुप्रतिम बनर्जी said...

आपकी सोच और आपकी भावनाएं बिल्कुल सही हैं। लोग अगर वक्त रहते नहीं चेते, तो हिंदुस्तान को बदशक्ल होते देर नहीं लगेगी। लानत है उन नेताओं को जो नफ़रत की आग पर सियासत की रोटी सेंकने से गुरेज नहीं करते।

Anonymous said...

काश कि आंखें मूंद लेने से मसले हल हुआ करते...लेकिन अफसोस ऐसा नहीं है..आपकी भावनाएं अपनी जगह सही हैं...लेकिन यहां जरूरत है थोड़ा थमकर समस्याओं पर गौर करने की...उनसे नजरें चुराने की नहीं...

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

देश के मौजूदा हालात को बहुत यथाथॆपरक ढंग से दशाॆया है आपने । कई सवाल भी खडे करती है । मैने भी अपने ब्लाग पर एक किवता िलखी है । समय हो तो पढें और प्रितिकर्या भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

डॉ .अनुराग said...

सिर्फ़ ओर सिर्फ़ सरकार का कडा रुख ओर कानून का सही पालन ऐसे छिछोरे राज नेतायो ओर उनके चमचो को ठिकाने लगा सकता है...चुनाव आयोग को उनकी पार्टी को निरस्त कर देना चाहिये .ओर ऐसे लोगो पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए

Aadarsh Rathore said...

विचारों का बेहतरीन अभिव्यक्तिकरण।
आपने भागलपुर के दंगों का ज़िक्र किया है।
यदि आपको सही लगे तो उस अनुभव का विस्तृत वर्णन करें।

Anonymous said...

namaskar, achcha likha hai aapne, dipawali ki shubhkamna dena chahta tha, lekin lagata hai aapne number badal liya hai...
rajan agrawa
9811343224

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Archanaji,
ap ke blog par apke vicharon ko padha.Aj kal kee bhag daud bharee jindagee men ap samaj,desh,logon ke bare men itna soach aur likh rahee han yah bahut achchee bat ha.
Likhana jaree rakhiye.shubhkamnayen.Ap mere blog par sadar amantrit han.
Hemant Kumar

Ashok Kaushik said...

सियासत की फितरत ही ऐसी है, वो सिर्फ फौरी फायदे देखती है। चाचा जब धृतराष्ट्र बन गया, तो भतीजे के सामने उससे अलग होने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था। और पहचान के संकट से जूझ रहे भतीजे के पास नफरत की राजनीति के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। कई बार तो इस देश में ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि आतंकी और फिरकापरस्त नेताओं में फर्क क्या है... दोनों ही अपने मतलब साधने के लिए आतंक को हथियार बनाते हैं और बेगुनाहों का खून बहाते हैं।

Anonymous said...

जिंदगी जीने के लिए है मैडम। इस तरह खाली निगेटिव लिखने का मतलब है कि आपने सिर्फ डिप्रेशन एज को देखा है। भागलपुर की गरीबी और उज्जडपना को देखा है, इसलिए आप ऐसा सोचती हैं। जिंदगी हसीन है, खुल कर जिंदगी को एन्ज्वाय कीजिए।