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Friday, April 25, 2008

जिंदा होने का मिल रहा है सबूत


प्रायश्चित के बाद भी
अफसोस कहीं बाकी है
शायद ये मेरे होने का सबूत है
मेरी सांसों के चलने का प्रमाण
वरना कई बार
वक्त गुजर जाता है
और अपने होने का अहसास तक नहीं होता
जैसे मैं और मेरा शरीर
कोई वस्तु, कोई सामान
जैसे पलंग, जैसे कोई मेज
अच्छा है कि तकलीफ कहीं बाकी है
ये संकेत है
मेरे भीतर के सपनों के जिंदा होने का
मतलब एक आकाश
अब भी है
जरा जरा फैलता हुआ
मौत का ख़ौफ अब भी है
छुपा हुआ कहीं मेरे भीतर
अभी नहीं फैला है सन्नाटा
पूरी तरह से
जो निगल जाए ज़िंदगी के तूफान को
मैं अपने भीतर महसूस कर पा रही हूं
गुस्सा, भय , क्रोध
मतलब किसी का विरोध
मतलब किसी से प्रेम
मतलब खुद के जिंदा होने का सबूत..........

2 comments:

PD said...

सीधा दिल तक उतरने वाली कविता है यह..
कभी मैं भी अपने जिंदा होने के सबूत ढूंढता हूं.. जो कभी नहीं मिलता.. आपको मिल गया सो खुशियां मनाईये..

Faceless Maverick said...

इस कशमकश को पढ़ कर किसी का भी मन अपने सपने तराश कर जीवित होने का सफल अर्थ ढूंढ लेगा. दंड और प्रयाश्चित से आगे भी तो जीवन है. एक अच्छी अभिव्यक्ति के लिए बधाई.