भारत का राष्ट्रीय खेल क्या?
लंदन में ओलंपिक चल रहा है। आशा निराशा
के पल हैं। कुछ तीखी टिप्पणियां। हर्ष से भर देने वाले हैरत अंगेजी जीत भी साथ में
है। अलग-अलग न्यूज़ चैनल, अलग अलग अखबार और उत्साह के अलग अलग रंग। हर जगह आह्लाद। लेकिन, इस
बाजारवाद में सच कहीं गुम है या फिर बाजारवाद ही इकलौता सच। जो इच्छा हो बोलिए, उससे
भी ना बने तो चिल्लाइये, कमसे कम इतनी बार कि लोगों को गीदड़ की हूंक पर भरोसा हो
जाए। कहने बोलने के लिए किसने रोका है? लोकतंत्र है और इस
लोकतंत्र की एक और अजीबोगरीब आदत है। यहां खुशी के समय दुखद सवाल करने पर सख्त
पाबंदी है और दुख के समय कोई सुखद सवाल ना पूछे तो बेहतर। लेकिन इस परंपरा को
थोड़ी देर के लिए तोड़ने में कोई हर्ज भी नहीं है। माहोल खुशी का है और सवाल थोड़ा
परेशान करने वाला।
इस पल में, पूरा देश ये चाहता है कि हम
ओलंपिक से बेशक कुछ लाएं या ना लाएं लेकिन हॉकी में एक पदक जरूर लाएं। ये सिर्फ
इसलिए क्योंकि ‘कथित
तौर’
पर हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। देश का खेल है। देश यानी आन, बान और शान। लेकिन,
हॉकी को इस देश में दोयम दर्जा प्राप्त है इसे निसंकोच स्वीकार करना चाहिए ये मानते
हुए कि हॉकी कोई कुकुरमुत्ते की खेती नहीं है जो बरसात गिरते ही अचानक लहलहा
उठेंगे। ओलंपिक के ठीक पास आते ही हम अचानक हॉकी-हॉकी चिल्लाने लगते हैं? क्योंकि
राष्ट्रीय खेल हॉकी है और इसमें पदक तो बनता ही है। ये अलग बात है कि हॉकी
खिलाड़ियों के साथ लगातार सौतेला व्यवहार होता रहा है। वैसे क्रिकेट छोड़ हर खेल
के साथ यही बात लागू होती है। लेकिन, फिर भी हॉकी राष्ट्रीय खेल है और इससे हमें
सबसे ज्यादा उम्मीदें रहती हैं। हां बेशक हम अपने खिलाड़ियों को बरसों टर्फ की जगह
खुले मैदान में खेलाते रहें। जब दुनिया (ओलंपिक समेत) पॉली ग्रास पर खेलती है तो
हम उन्हें टर्फ देते हैं। बहरहाल, सवाल कई हैं इसलिए, फिलहाल इस पचड़े में नहीं
पड़ना। इस विषय पर बहुत बहस हो चुकी है। सवाल तो इससे भी बड़ा है। वो ये कि किसने
कहा कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल हैं? कौन
कहता है हॉकी राष्ट्रीय खेल है?
ये सब कहां दर्ज है। कंपीटिशन बुक्स में
या फिर पहली, दूसरी, तीसरी कक्षा की सामान्य ज्ञान किताबों में।
एश्वर्या पराशर नाम की बच्ची के मन में
जब ये जानने की जिज्ञासा हुई कि हॉकी
हमारा राष्ट्रीय खेल है इसकी जानकारी कहां दर्ज है। तो उसने एक आरटीआई दाखिल कर
प्रधानमंत्री कार्यालय से ये जानकारी मांगी। सातवीं में पढ़ने वाली इस बच्ची को
संबंधित मंत्रालय (खेल एवं युवा मामले) के अतिरिक्त सचिव शिव प्रताप सिंह ने जवाब
भेजा है कि मंत्रालय ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल नहीं घोषित किया है। जवाब
संक्षिप्त और सरल है। इसे समझने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन जो हम वर्षों से
पढ़ते आ रहे हैं रटते आ रहे हैं उसका क्या। क्या हम अपनी मां से नाराज हो जाएं कि
मां तुमने कहां पढ़कर हमें ये बताया कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। या फिर अपने
क्लास टीचर पर नाराजगी दिखाएं। उस किताब को फाड़ कर फेंक दे जहां ये लिखा है कि ‘ हॉकी इस आवर नैशनल
गेम’।
और हम अपने बच्चों को क्या पढ़ाएं कि हमारे देश का कोई राष्ट्रीय खेल नहीं है। फिर अगर उसने पूछा
क्यों नहीं है तो जवाब के लिए मंत्रालय भेज दें?
वैसे, एश्वर्या के कई और सवाल हैं जिसका
जवाब उसे नहीं मिल पाया। मसलन महात्मा गांधी कब राष्ट्रपिता बने? राष्ट्रीय पशु कौन
है। वगैरह वगैरह।
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