मैं ‘अन्ना’ माफी मांगता हूं!
तुमको बुलाया यहां
कड़ी धूप में
तुमको इकठ्ठा किया
भारी बरसात में
तुमसे नारे लगवाए
तुम्हारा गला रुंध गया होगा
मुझे माफ करना
माफ करना मैंने तुम्हें सफेदपोश का सच बताया
गरीबी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बोला
मुझे माफ करना
तुमसे तुम्हारे नेता के खिलाफ वंदे मातरम का नारा लगवाया
तुम्हें आंदोलित किया
मुझे माफ करना
अपनी बूढ़ी हड्डियों पर तरस नहीं खाया
मैंने बार-बार अंतड़ियों को सुखाया
73 साल की उम्र में भी रीढ़ की हड्डी सीधी रखी
ये सब मेरी गलतियां हैं
और मैं अपनी गलतियों के लिए माफी मांगता हूं
मैंने गहरी नींद में सो रहे मासूम देश वासियों को जगाया
अब! पश्चाताप भी कैसे करूं
सो माफी मांगता हूं
मुझे माफ करना
मैंने खुद को क्रांतिकारी समझने की भूल की
उसके लिए मुझे माफ कर दो
मैंने गांधी बनने की गलती की
हश्र की परवाह किए बगैर
मैं, कसम खाता हूं आज से मौन ही रहूंगा
मौत का इंतजार करता हुआ किसी अन्य बूढ़े की तरह
मैं किसन बापट बाबूराव हजारे
देश को आजादी दिलाने निकला
इसका खेद है मुझे
मैं आज शीष झुकाता हूं
ठहुने जमींदोज करता हूं
बूढ़ी ठिठुरती हाथों ने बार बार तिरंगे को उपर उठाए रखने की जिद क्यों की
मैं माफी मांगता हूं
बुढ़ापे में कम बोलना चाहिए
मैंने गला फाड़ा
मुझे माफ कर देना
मेरे सख्त वक्तव्यों, दिक्कतों,संशयों
के लिए मुझे माफ कर देना
मुझे मिटा देना अगर कोई भूलवश इतिहास में दर्ज कर जाए
मेरे इस पागलपन को....
ब्लेड से खुरच-खुरच कर नोच देना उस पन्ने को
जिसपर मेरी अड़ंगेबाजी दर्ज की जाए
वरना, फिर से कोई पगलाएगा
और पूरा देश वंदे मातरम, वंदे मातरम चिल्लाएगा
तुमको बुलाया यहां
कड़ी धूप में
तुमको इकठ्ठा किया
भारी बरसात में
तुमसे नारे लगवाए
तुम्हारा गला रुंध गया होगा
मुझे माफ करना
माफ करना मैंने तुम्हें सफेदपोश का सच बताया
गरीबी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बोला
मुझे माफ करना
तुमसे तुम्हारे नेता के खिलाफ वंदे मातरम का नारा लगवाया
तुम्हें आंदोलित किया
मुझे माफ करना
अपनी बूढ़ी हड्डियों पर तरस नहीं खाया
मैंने बार-बार अंतड़ियों को सुखाया
73 साल की उम्र में भी रीढ़ की हड्डी सीधी रखी
ये सब मेरी गलतियां हैं
और मैं अपनी गलतियों के लिए माफी मांगता हूं
मैंने गहरी नींद में सो रहे मासूम देश वासियों को जगाया
अब! पश्चाताप भी कैसे करूं
सो माफी मांगता हूं
मुझे माफ करना
मैंने खुद को क्रांतिकारी समझने की भूल की
उसके लिए मुझे माफ कर दो
मैंने गांधी बनने की गलती की
हश्र की परवाह किए बगैर
मैं, कसम खाता हूं आज से मौन ही रहूंगा
मौत का इंतजार करता हुआ किसी अन्य बूढ़े की तरह
मैं किसन बापट बाबूराव हजारे
देश को आजादी दिलाने निकला
इसका खेद है मुझे
मैं आज शीष झुकाता हूं
ठहुने जमींदोज करता हूं
बूढ़ी ठिठुरती हाथों ने बार बार तिरंगे को उपर उठाए रखने की जिद क्यों की
मैं माफी मांगता हूं
बुढ़ापे में कम बोलना चाहिए
मैंने गला फाड़ा
मुझे माफ कर देना
मेरे सख्त वक्तव्यों, दिक्कतों,संशयों
के लिए मुझे माफ कर देना
मुझे मिटा देना अगर कोई भूलवश इतिहास में दर्ज कर जाए
मेरे इस पागलपन को....
ब्लेड से खुरच-खुरच कर नोच देना उस पन्ने को
जिसपर मेरी अड़ंगेबाजी दर्ज की जाए
वरना, फिर से कोई पगलाएगा
और पूरा देश वंदे मातरम, वंदे मातरम चिल्लाएगा
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