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Friday, April 23, 2010

नंगे पांव मेरा दोस्त

पीले रंग की बुशर्ट
और पीले रंग की पैंट
'गरीब'
भूखा, नंगा गरीब
ये आम राय थी लोगों की 
लेकिन मेरा दोस्त नंगा नहीं था
ताकिद!
सिर्फ उसके पांव नंगे थे...
वो नंगा नहीं था,
परिस्थितियां थीं जो नंगी थीं,
और नंगा था उसका समाज
जो उसके ईर्द-गिर्द खड़ा था...
जूते वालों का समाज
और इन सबके बीच...
नाचती,ठिठोली करती नंगी थी उसकी किस्मत
कह रहे थे लोग
कैसी किस्मत लेकर आया है...
दिल्ली की चिलचिलाती धूप में इसके पास जूते भी नहीं हैं...
देखो!
शायद देखने वालों ने ये नहीं देखा था
कैसे उसके बापू ने थामी थी उसकी उंगली
और उस भीड़ में कैसे कातर थी उसकी मां की नज़रें
जो लगातार उसके नंगे पांवो को निहार रही थी
कहीं किसी जूते से दब न जाए, इस खयाल में...
कैसे था बदकिस्मत मेरा दोस्त
कैसे था वो भूखा,नंगा गरीब
कैसै...
सिर्फ इसलिए कि उसने नहीं पहने थे
जूते?

14 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत गहरे भाव!! शानदार शब्द संयोजन!!

M VERMA said...

जो लगातार उसके नंगे पांवो को निहार रही थी
कहीं किसी जूते से दब न जाए, इस खयाल में...
क्या खूब संवेदनाओं को करीने से सजाया है.
वाह

दिलीप said...

bahut hi samvedansheel rachna...aur aapki nazar ko salaam...

हिन्दी साहित्य मंच said...

वास्तविकता को शब्दरूपी बंधन में मार्मिकता से गुंथा है ....यूँ ही लिखती रहें

Anonymous said...

bahut hi behtareen rachna..
padhna achha laga....
-------------------------------------
mere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/

Anonymous said...

बहुत खूब दिल को छू लिया.

Maria Mcclain said...

You have a very good blog that the main thing a lot of interesting and beautiful quotes! hope u go for this website to increase visitor.

विजय प्रकाश सिंह said...

मैने तो आज ही पढ़ा, भई वाह, बहुत अच्छा लगा ।

PARVIN ALLAHABADI said...

Apka Dil ke kisse kaunney mey Mere liye bhi, Kya Kuch gagah hai kya Dost.

PARVIN ALLAHABADI
tumhare kauna mey toh bahut Gajag hai.( Jab Kaune mey itne sab simat leet hoo, toh agar gajag badi hotee toh kya hota)
woh beauty with Brains suna tha.
Aaj dekha Beauty with Komal Heart

Dream said...

bahot khub.....kafi kuch kah jatahe....

सुरेश शर्मा (कार्टूनिस्ट) said...

बहुत खूब,बहुत अच्छा लगा ।

Viren Singh said...

band kamre me baith kar likhi gai kavita lagti hai. plz ye shahari bachhe ka foto hata lo dost, sorry agar aap ko bura laga ho

Anonymous said...

सुन्दर प्रयास...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

वो नंगा नहीं था,
परिस्थितियां थीं जो नंगी थीं,
और नंगा था उसका समाज
जो उसके ईर्द-गिर्द खड़ा था...
जूते वालों का समाज

अर्चना राज-हंस जी बहुत उम्दा भाव -व्यंग्य सार्थक रचना बधाई हो सुन्दर प्रस्तुतियों और अच्छे ब्लॉग के लिए

आइये अपना सुझाव व् मार्ग दर्शन हमें भी दें -धन्यवाद