मैं तो अख़बार में कुछ और ढूंढ रही थी। नहीं मिला। जो मिला उसकी अपेक्षा कहीं से नहीं थी।
इतना रोमांचक मैच...उसपर सचिन के 175 रन...आखिर जोशी जी चुप कैसे रह सकते थे... क्रिकेट खासकर सचिन की बारिकी से वाकिफ जोशी साहब हमेशा इस तरह के रोमांचक मैच के बाद जमकर लिखते थे...लेख पढ़कर मजा आ जाता था...लेख पढ़ने के बाद काफी देर तक मैं ये सोचती रह जाती थी कितना बढ़िया समझते हैं जोशी जी सचिन को...उनके लेखों से ये भी लगा कि शायद सचिन को बहुत प्यार भी करते हैं...
फिर मैं सोचती अगर प्रभाष जी पत्रकार नहीं होते तो क्या होते? निसंदेह, अदभुत क्रिकेटर होते...
कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ये जानना कि वो अब नहीं रहे... लेकिन जीवन के अंतिम पलों में भी सचिन उनके साथ थे...क्रिकेट उनके साथ था...
पत्रकारिता जगत उनके योगदान को कभी भूल नहीं सकता...सहज और सरल भाषा से पत्रकारिता का परिचय कराने वाले जोशी साहब इस तरह से, अचानक से चल पड़ेंगे ये अब भी ग्रहण नहीं कर पा रही हूं...
उनको मेरा नमन
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3 comments:
मुझे लगता है कि प्रभाष जी की भी सचिन के 17000 रन पूरा होने को देखने की इच्छा रही होगी जो पूरी हो गई। पर हमारे बीच से प्रभाष जी का जाना हमको स्तम्भ कर गया। एक लेखक और पाठक का रिशता कुछ ऐसा ही होता है भावानाओं से भरा हुआ। इस संडे जनसत्ता आयेगा, पर " कागद कारे" नही आऐगा। जिसका हर संडे इंतजार रहता था मुझे।
प्रभाष जोशी पत्रकारिता की दुनिया में हमेशा जीवित रहेंगे. how r u
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