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Thursday, August 13, 2009

सफर खत्म हुआ लेकिन...

वो कहीं से भली नहीं थी, उसकी क्रूरता, उसके चेहरे पर दिख रही थी। मेरा मन कह रहा था कि उससे दूर रहूं। उसे न देखूं। लेकिन नज़र थी कि बार बार उधर चली जा रही थी। एकाध बार उसने भी मुझे देखा था। वो मेरी तरफ देखकर क्या सोच रही थी ये मुझे नहीं पता था, लेकिन मैंने जब भी उसकी तरफ देखा सिर्फ एक बात सोच रही थी कोई इतनी क्रूर हो सकती है क्या, कि उसकी क्रूरता उसके चेहरे से दिखने लगे? वो भी एक औरत। लेकिन मुझे इसबात पर कोई संदेह नहीं था कि वो क्रूर थी। और भयानक भी। सफ़र में उसका पति उसके साथ था। उतना ही सुंदर। काफी साधारण छह फीट का लंबा चौड़ा भरे बदन का शख्स। उसे देखकर लग रहा था कि वो अपनी पत्नी से बहुत डरता है। अलबत्ता, ये कहें कि बिना पत्नी की इजाजत के वो कुछ भी नहीं करता होगा।
हालांकि, पहली नज़र में जब मैने उस शख्स को देखा तो मुझे ये लगा कि ये आदमी कितना बदकिस्मत है कि इतना सुंदर होने के बावजूद उसे ऐसी कुरूप पत्नी मिली है?  मेरे मन ने तकरीबन ये मान लिया था कि जरूर इस शख्स ने कभी बहुत बड़ा पाप किया होगा। वरना ऐसा तो आमतौर पर नहीं होता। लेकिन धीरे-धीरे बात समझ में आई कि दरअसल वो एक दब्बू किस्म का व्यक्ति था जिसे शायद मां-बाप के दबाव में आकर उस महिला से विवाह करना पड़ गया होगा। और बाद में पत्नी बनी उस महिला ने उसे और भी दब्बू बना दिया होगा।
महिला मुझसे काफी दूर बैठी थी, लेकिन मेरे भीतर उसका डर दूर तलक बैठ गया था। उसे देखते ही लगता था कि जैसे पता नहीं किस बात पर वो तेज चीख पड़ेगी। पता नहीं अभी क्या बोल पड़ेगी। इसिलए मैं तो पहले ही दुबक कर बैठ गई थी। लेकिन मन था कि वो लगातार उस महिला का तरह तरह से वश्लेषण कर रहा था। सफर थी, नींद थी और रात थी, लेकिन मेरे भीतर भय था। उस महिला का भय। पता नहीं वो कैसा भय था। हालांकि मुझे बार बार ये भी लग रहा था कि महिला का भय बिला वजह मेरे भीतर घुस आया है। आखिर किसी को देखकर, सुनकर कैसे ये तय किया जा सकता है कि वो इतना क्रूर होगी? मैं गलत हूं। नहीं, नहीं ये औरत शायद किसी के लिए तो अच्छी होगी?  शायद ये अपनी पिता की लाडली होगी, इसीलिए इतना बिगड़ गई है। लेकिन इस विश्लेषण पर मन ज्यादा देर तक ठहरा नहीं। मुझे लगा कि ये क्रूर महिला कुछ तो अच्छा करती होगी? वो क्या हो सकता है? क्या वो बैंगन का भुरता अच्छा बनाती होगी? अधेड़ उम्र की महिला है इसके बच्चे होंगे? ये अपने बच्चे को कैसे पुचकारती होगी? इसके चेहरे पर तो ममत्व दूर दूर तक नहीं है। हाय तो क्या इसके बच्चे मातृ प्रेम के लिए तरस जाते होंगे? लेकिन अगर ऐसा होता होगा तो इसमें बच्चे का क्या कसूर? वैसे उसके पति का भी क्या कसूर? पति का कसूर तो हो भी सकता है क्योंकि एक पुरुष होने के नाते उस शख्स ने कभी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी होगी।  उसकी शख्सियत वैसी थी भी, वो कामचोर दिखता था।
लेकिन बच्चे? उनका क्या कसूर?
इतना सबकुछ सोचते समझते और खामखा एक बात को लेकर खिचड़ी पकाते हुए सुबह हो गई? चाय पीने के लिए मैं ऊपर वाले बर्थ से नीचे उतरी, और चाय का प्याला लेकर बैठने लगी। मुझे उसवक्त ये खयाल नहीं आया कि मैं उसी महिला की बगल में बैठ रही हूं जिसे लेकर मैने पारदिन इतना बुरा बुरा सोचा था। बैठने के लिए मैने बर्थ पर पड़ी चादर सरका दी।
'यहां मत बैठो'
कड़क आवाज़, मैं बैठते-बैठते वापस खड़ी हो गई। ये उसी महिला की आवाज थी।
जिसके बारे में मैने बिना उसके कुछ बोले काफी वश्लेषण कर लिया था। तीनो बर्थ खाली होने के बावजूद उस महिला ने मुझे वहां बैठने नहीं दिया।
उसकी बात का मुझे जरा बुरा नहीं लगा। लेकिन मैने ये जरूर सोचा कि उससे ये तो कह ही दूं कि तुम ऐसा कहोगी इसकी ख़बर मुझे थी। मुझे पता था कि तुम इसी स्वभाव की हो। तुम्हारी क्रूरता तुम्हारे चेहरे तक पर उकर आई है। इसका आभाष तुम्हें नहीं है।
मैं हंसते हुए ऊपर वाली बर्थ पर चली गई। मैने उस महिला के बारे में जो कुछ विश्लेषण किया था, वो सच था। ये उसने खुद बता दिया। वरना उस खाली बर्थ पर मैं बैठ ही जाती तो क्या हो जाता? वो सीट मेरी भी थी। दिन हो चुका था। आखिर ऊपर बर्थ वाला कहां जाता? इसी बीच टिकट जांच करने के लिए टीटी आ गया। उससे पता लगा कि जिस लोवर बर्थ पर वो बैठी थी और सामने वाले लोवर बर्थ पर उसका पति बैठा था, वो दोनो ही बर्थ उसकी नहीं थी। उसका बर्थ मिड और अपर था जिसे उसने बनावटी भोलेपन से सहयात्री से हासिल किया था। बात जरा सी थी। लेकिन, मुझे उसकी कूबोली का जरा मलाल नहीं है। मैं अब भी इसी बात पर अफसोस कर रही हूं कि वो इतनी क्रूर क्यों थी कि वो क्रूरता उसके चेहरे से दिखने लगी थी। मैं कोई नहीं हूं कि ये कहूं कि उसे वैसा नहीं होना चाहिए था.. लेकिन

9 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

kabhi kabhi bemel jodiyan ban jati hai..jis vajah se aadmi ko jindagi bhar bhugata padana hai..

by the way..nice story..thank you.

Unknown said...

aadmi ko samajh pana duniya ki sabse kathin paheli hal karne jaisa hai...
badhaai !

डॉ .अनुराग said...

वैसे रेलवे के नियम ये है की दिन में लोअर बर्थ वाली सीट पर ऊपर बर्थ वाले का अधिकार होता है .इसलिए उस पर नंबर भी लिखे होते है ....हिन्दुतान में बेमेल जोडिया बच्चो की फौज के साथ उम्र भर लड़ते लड़ते जिंदगी गुजार देती है

Mithilesh dubey said...

जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई.

Vinay said...

जय श्री कृष्ण!

sanjay vyas said...

चेतन भगत का एक उपन्यास रेल यात्रा से ही शुरू होता है लेकिन जहां उस किस्म की यात्रा( भारत के लिए एक अकल्पनीय) रूमानियत के लिए विशाल स्पेस प्रदान करती है, आपकी यात्रा एक आम भारतीय को रोजाना होने वाले खीज भरे अनुभव से ज्यादा भिन्न नहीं है. लेकिन मैं फिर कहूँगा कि हमारे आग्रहों के अनुसार सुन्दरता और व्यवहार को कार्य कारण सम्बन्ध की तरह देखना हर बार सही नहीं होता.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

आभार
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर

के सी said...

मैं कई बार सोचता हूँ कि कोई ब्लोगिंग क्यों करे ? आज आपकी पोस्ट के कोई शास्त्रीय अर्थ लगाने के स्थान पर कहूँगा कि आपकी ये पोस्ट मुझे सही मायनों में ब्लोगिंग लगती है. एक मन की बात उसका सहज और वास्तविक विवरण और उसे बाँट देने के बाद मिली राहत. संजय जी के वक्तव्य को मेरी बात के आगे जोड़ा जा सकता है.हम अपनी पसंद और स्तर के साथ जीने के जो प्रयास करते हैं वे लगभग रूमानी ही होते हैं. जैसे हम होते हैं वैसी दुनिया नहीं होती जैसी दुनिया होती है वैसे हम नहीं होते.

अबयज़ ख़ान said...

Zarur Koi Majbori Rahi Hogi,
Yun hi Koi Bewafa nahi hota....

Aur

Achchi Surat wale sare Patthar Dil ho mumkin hai...
Ham to us din Rai denge jis din Dhoka Khayenge...


Chaliye apki Bloging Phir se Shru to hui..