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Tuesday, June 3, 2008

...जो अब किये हो दाता



"ख्वाब मुझे अब नहीं दिखते
शायद, इन आंखों ने सबकुछ देख लिया है"

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

नही मोहतरमा ....अभी इन आंखो ने बहुत ख्वाब देखने है......वैसे शेर खूब है......

बालकिशन said...

डाक्टर साहब से सहमत हूँ.
अभी तो इनकी शुरुआत है.

आलोक साहिल said...

ह्ह्ह्म्म्म्म... ख्वाब...एक अजीब चीज,जिसके बारे में हम तकरीबन हर दिन किसी न किसी परिप्रेक्ष्य के तहत चर्चा कर ही लेते हैं.और बड़ी गफलत है इस बात में कि हर कोई यही कहता है,मेरी आंखो ने सबकुछ देख लिया,वगैरह वगैरह...
पर क्या सच में,हमारी आंखें ख्वाब देखती हैं,आज तलक इस बात से ख़ुद को सहमत नहीं कर पाया,यद्यपि कि मैं शेखचिल्ली कि भांति सरे दिन सपने देखता रहता हूँ,पर अन्तः यही समझाता हूँ ख़ुद को कि वो ख्वाब नहीं,मेरी कपोल कल्पनाएं हैं,
वैसे भी ऐसे रूमानी ख्वाब सिर्फ़ उन कुछ बेहद खुशनसीब/बदनसीब(आपके नजरिये के हिसाब से) लोगों को ही मयस्सर हैं,काश...मुझे भी....
आलोक सिंह "साहिल"

अर्चना राजहंस मधुकर said...

ये पंक्तियां कल्पना नहीं है साहिल जी...

Udan Tashtari said...

दो पंक्तियों मे बहुत कुछ कह दिया.

Nitin Anand said...

rightly said...!!
nice drawing.