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Friday, April 25, 2008
वक्त बीत रहा है...
हर घर में बीत रहा है वक्त
अपने हिसाब से।
लेकिन कुछ लोगों ने की है शिकायत
वक्त के ठहर जाने का।
नहीं,
वो घड़ी की सुई के ठहर जाने की बात नहीं कर रहे थे।
"वक्त" की बात कर रहे थे,
खालिस वक्त की,
जी हां,
आप ठीक समझ रहे हैं।
ये वही लोग थे,
जिनके घर एक ही वक्त जलता है चूल्हा।
बाकी का वक्त गुजारना पड़ता है,
यूं ही।
किसी की चौखट पर,
किसी चौबट्टे पर
जो लोग अपने बच्चों को दूसरे पहर लोरियां सुनाते हैं,
खिलाते हुए।
और दुआ करते हैं,
अगली सुबह उसके देर तक सोए रहने की।
ऐसे ही लोगों ने की है शिकायत।
वक्त के ठहर जाने का।
ऐसे ही घरों में वक्त गुजरता नहीं,
ठहर जाता है...
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8 comments:
आपकी संवेदनायें और रचना दोनों ही प्रशंसनीय हैं। बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
ये भी बढिया रहा.. जब पढना शुरू किया तो कुछ अनमना सा लग रहा था.. मगर अंत तक आते आते आपको बधाई देने का जी चाहने लगा..
aaj kee tarikh me pesh donon kavitayen bahut achchi hain.likhti rahen. aane dijiye bahar, pa bhi chintan chalte rahna chahiye.
अच्छी और यथार्थ को दर्शाती।
ab kitne dinon tak khamoshi rahege, likhtee kyon nahi hain, roj-roj aape purane post par kitne din tak tasalli karunga.
waqt ke paimaiash badi mushkil hoti hai, thahrne deejie waqt ko, zindgi na thahrne paaye.kucch zaddozahad ke baad ye shikayat door ho jayegi.
waqt ke paimaiash badi mushkil hoti hai, thahrne deejie waqt ko, zindgi na thahrne paaye.kucch zaddozahad ke baad ye shikayat door ho jayegi.
OK with you?
vitite of the Radio Blogger
http://radionovafriburgoam.blogspot.com/
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