महंगाई का दौर
देह,लेकिन सस्ता
ख़बरों में एक ये भी ख़बर
खरीदो, खरीदो...
जानिब,
स्त्री मूल्य तय नहीं करती
बाज़ार नहीं बनाती
इसलिए, सस्ती हो गई है आज
सबसे कीमती चीज!
दुनिया भी क्या खूब है
कभी अस्मत, कभी देह
और कभी मांस का लोथड़ा कहती है
बिल्कुल अपने हिसाब से
यहां तय होती हैं चीजें
पर्दानशीं, बेपर्दा
उफ्फ...
एक शख्स
दो हाथ.....
5 comments:
bahut khub..
behtreen ...vicharon ko aap bahut achchhi tarah vyakt karti hain
बैशक काफी दिनों के बाद पढने को मिली आपकी रचना। पर पढकर आनंद आ गया। कम लिखे पर लिखा करे आप।
थोड़े से शब्दों में यथार्थ इतना सारा!
गहन रचना-झकझोरती है!!
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